शेरनी का पुत्र राठौड़ राजवंश के राव शिवाजी की कहानी |

 शेरनी का पुत्र राठौड़ राजवंश के  राव शिवाजी की सच्ची दिल को छू कहानी


राजस्थान के मरुस्थल में बसी एक छोटी-सी बस्ती कांधलपुर जहां वीरता की कहानियां हर दिशा में गूंजती थीं। यहीं जन्म हुआ एक ऐसे बालक का  जिसकी कहानी आज भी रहस्य और रोमांच से भरी है। यह बालक था राव शिवाजी  राठौड़ राजवंश के  जिसे शेरनी ने पाला था।

शुरुआत का रहस्य

12 वीं शताब्दी का समय था। राठौड़ वंश के पूर्वजों की शक्ति कम हो रही थी और उनके दुश्मन उनकी भूमि पर कब्जा करने के लिए तैयार थे। राव सिहा जी राठौड़ वंश के एक योद्धा एक भयंकर युद्ध में मारे गए। उनकी पत्नी रानी पद्मिनी गर्भवती थीं। अपनी सुरक्षा के लिए रानी को जंगल में भागना पड़ा, लेकिन  वह दुर्भाग्यवश वह एक भयानक शेरनी के इलाके में जा पहुंचीं वहां शेरनी ने रानी पर हमला किया। रानी ने अपने जीवन की अंतिम सांसें लेते हुए एक गुफा के पास अपने बेटे को जन्म दिया और उसे छोड़कर चल बसीं। शेरनी ने उस नवजात को देखा और, आश्चर्यजनक रूप से, उसे मारने के बजाय उसे अपने बच्चे की तरह पालने लगी। शेरनी की गुफा में बचपन


शेरनी ने उसे दूध पिलाया, और उसे जंगल में अपने शावकों की तरह बड़ा किया। बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और अपनी मां जैसी ही ताकत, निर्भीकता और जंगल में जीवित रहने की कला सीख गया। वह शेरों के बीच पला, लेकिन उसकी आंखों में कुछ खास था—एक अद्भुत चमक, जो उसकी इंसानी पहचान की ओर इशारा करती थी।


उसका नाम "शिवा" रखा गया, क्योंकि गुफा के पास एक शिवलिंग था, जिसे स्थानीय लोग पूजा करते थे। जंगल के आसपास के लोग यह जानते थे कि गुफा में एक अद्भुत बालक रहता है, लेकिन कोई भी उसके करीब जाने की हिम्मत नहीं करता था।


मानव समाज में वापसी


एक दिन, एक साधु जंगल से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक बालक शेरों के साथ खेल रहा है। साधु ने तुरंत समझ लिया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। साधु ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बालक ने शेरनी को बुला लिया। साधु ने अपनी बुद्धिमानी से शेरनी को शांत किया और बालक को मानव समाज में ले जाने का निर्णय किया।


गांव के बड़े-बुजुर्गों ने उसे पहचाना। यह वही बालक था, जो राठौड़ वंश का वारिस था। गांव वालों ने उसे अपना राजा मान लिया। उसकी परवरिश भले ही जंगल में हुई हो, लेकिन उसके भीतर नेतृत्व का अद्भुत गुण था।


योद्धा बनने की यात्रा


शिवा को जल्द ही शिक्षा और युद्ध-कला में प्रशिक्षित किया गया। उसकी शारीरिक ताकत और साहस जंगल में बिताए वर्षों का परिणाम थे। उसने घुड़सवारी, तलवारबाजी और रणनीति सीखनी शुरू की। वह न केवल एक योद्धा बना, बल्कि अपने लोगों के लिए न्यायप्रिय और दयालु नेता भी साबित हुआ।


राज्य की स्थापना


शिवा के युवा होने तक कांधलपुर दुश्मनों के कब्जे में था। उसने अपनी मातृभूमि को वापस पाने की ठानी।  उसने अपने कई वीर साथियों को  के साथ उसने दुश्मनों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। जंगल में सीखी चालाकी और शेर की तरह आक्रामकता ने उसे हर युद्ध में विजयी बनाया।


जल्द ही उसने कांधलपुर को आजाद करा लिया और राठौड़ वंश की स्थापना की। हर  तरफ़ लोग उसे राव शिवाजी के नाम से पुकारने लगे उसके  नारे लगाने लगें वह शेरनी का पाला हुआ योद्धा था, जिसने इंसानियत और वीरता का आदर्श स्थापित किया।


मृत्यु और विरासत


राव शिवाजी ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े और जीते। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्रों ने राठौड़ वंश की शक्ति को और बढ़ाया। आज भी, राजस्थान में राव शिवाजी की वीरता और शेरनी द्वारा पाले जाने की कहानी लोकगीतों में जीवित है।


यह कहानी हमें सिखाती है कि हर परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो साहस, बुद्धिमानी और नेतृत्व की क्षमता से कोई भी अपनी पहचान बना सकता है। राव शिवाजी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि इरादे मजबूत हों तो जंगल से लेकर सिंहासन तक का सफर तय किया जा सकता है


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